प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) की जगह नई पेंशन नीति लागू करने पर विचार किया जा रहा है, जिसमें 50% पेंशन का प्रावधान शामिल किया जा सकता है। आंध्र प्रदेश की तर्ज पर इस नियम को लागू करने के लिए वित्त आयोग स्तर पर कागजी कार्यवाही जारी है, लेकिन नीतिगत निर्णय आचार संहिता समाप्त होने के बाद ही लिया जाएगा।
ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत, सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के समय कई सुविधाएं और मासिक पेंशन मिलती थी, लेकिन कुछ समय पहले राज्य सरकारों ने इसे बंद कर दिया था। पिछली सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम को फिर से लागू करने का ऐलान किया था। गहलोत सरकार के समय में यह सबसे बड़ा फैसला था। वर्तमान सरकार भी इसे आंध्र प्रदेश की तर्ज पर 50% पेंशन के साथ बदलने पर विचार कर रही है।
2004 के बाद नियुक्त कर्मचारियों के लिए न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) लागू की गई थी, लेकिन इसके बाद कुछ अन्य राज्यों ने भी ओल्ड पेंशन स्कीम को पुनः लागू किया। केंद्र सरकार ने अभी तक ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू नहीं किया है। राजस्थान में पेंशन पर सरकार सालाना करीब 26,000 करोड़ रुपए खर्च करती है, जिसमें से हर महीने करीब 1,300 करोड़ रुपए का व्यय होता है। इसके अलावा, सोशल सिक्योरिटी पेंशन पर भी लगभग 1,100 करोड़ रुपए प्रतिमाह खर्च किए जाते हैं।
पिछली गहलोत सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने के लिए पांच गारंटी दी थीं, जिनमें से एक ओल्ड पेंशन स्कीम भी थी। अब प्रदेश सरकार आंध्र प्रदेश की तर्ज पर बदलाव कर सकती है, जहां वर्तमान में 50% पेंशन लागू है। ज्यादातर राज्यों और केंद्र सरकार ने नई पेंशन स्कीम को लागू कर रखा है, लेकिन कर्मचारी हमेशा ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग करते रहते हैं। इस संदर्भ में, सरकार बीच का रास्ता निकालने की कोशिश कर रही है, जिसमें 50% पेंशन का प्रावधान किया जा सकता है। फिलहाल, इस पर विचार किया जा रहा है और आंध्र प्रदेश में यह स्कीम पहले से ही लागू है।
OPS Pension Modal Update
2004 से पहले, देश के सभी राज्यों में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू थी। इसके बाद, नई पेंशन स्कीम लागू की गई, जो केंद्र सरकार और सभी राज्यों में समान रूप से लागू हुई। हालांकि, धीरे-धीरे कई राज्यों ने ओल्ड पेंशन स्कीम को पुनः लागू किया है।
इस प्रकार, प्रदेश सरकार ओल्ड पेंशन स्कीम की जगह नई पेंशन नीति लागू करने पर विचार कर रही है, जिसमें 50% पेंशन का प्रावधान शामिल हो सकता है। कर्मचारियों की मांग और सरकार के नीतिगत निर्णय के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।